मंच की कविता से गद्य-व्यंग्य में प्रवेश के अपने मज़े भी हैं और लाभ भी और सीमाएँ भी। संजय के व्यंग्य इन तीनों बातों के उदाहरण हैं। व्यंग्य की भाषा पर इनकी पकड़ है और यह बात व्यंग्य कविता के लम्बे अभ्यास की देन, अति सरलता से विषयों का निर्वाह तथा हटकर इधर-उधर की बातों में लगजाना यह भी मंच पर कविताएँ पढ़ने के अभ्यास के कारण है।- ज्ञान चतुर्वेदी
Gyan Chaturvedi