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संजय झाला हिन्दी कवि सम्मेलनों के प्रखर हस्ताक्षर हैं और मंचों पर प्रस्तुतिगत प्रयोगों के कारण चर्चित भी। संजय शास्त्रीय भाषा और बिम्बों के साथ विसंगतियों पर असरदार प्रहार करते हैं। संजय झाला के व्यंग्य अपनी समग्रता में विद्रूपताओं को रेखांकित करते हैं और जीवन में शुचिता के प्रति आस्था के महत्त्व की ओर संकेत करते हैं। झाला का व्यंग्यकार अपनी अंजुरि में जीवन की समग्रता को समेटना चाहता है। झाला के व्यंग्यों में जब 'हास' के प्रति अकुलाहट नज़र आती है तो याद आता है कि ऋग्वेद के एक मंत्र में प्रयुक्त 'हस्' शब्द का अर्थ यायणाचार्य ने दीप्ति अथवा जीवन ऊर्जा के अर्थ में किया है।
- मधुमती, मार्च 2006