हास्य की नव उज्ज्वल जलधार
व व्यंग्य के हिल्लोलित उच्छल प्रहार,
अपने कथ्य के तथ्य की रंगत को शास्त्र संगत संस्तुति
देने के लिए कहीं संस्कृत की सुभाषित-सु्क्तियाँ,
कहीं हिन्दी के सद्ग्रंथों की सटीक उक्तियाँ।
गीता के श्लोक, वेदों की ऋचाएं,
पंचतंत्र के पात्रों का अद्भुत प्रयोग,
कहीं तुम्हारे बहुमुखी पौराणिक ज्ञान से प्रसन्न
और कहीं आधुनिकतम संचेतना से सन्न, प्रसन्न हो गया मन।
कल्पना की दूरगामी तरंग,
भावों की उत्साहित उमंग,
मधुर भाषा में मकरंद की सुगंध,
गद्य में पद्य का आनंद,
विषय की अप्रतिहत गति
न कहीं शैथिल्य न कहीं अति,
सतत, सजग, समरसता में प्रति।
हास्य की विद्युत छटा में व्यंग्य की घनघटा का गर्जन निराला,
लेखन की कौन पाठशाला में पढ़े हो रे संजय झाला।
- स्व. ओम प्रकाश 'आदित्य'
Late Om Prakash 'Aditya'