देश के मंचीय और टीवी पर प्रकट होने वाले कवियों में राजस्थान के झाला एक ऐसे कवि हैं, जिन्होंने गद्य-पद्य दोनों में रचनाएँ लिखी हैं। उनका हास्य मन को गुदगुदाता है, वहीं व्यंग्य दिलो-दिमाग पर गहरी चोट करता है। समय, समाज, देश-दुनिया को साथ लेकर चलते हुए झाला ने वर्तमान युग की त्रासदी और समाज के विद्रूप चेहरे को पाठक के सामने सीधे-सीधे परोसा है। संजय शब्दों का चयन इस कुशलता से और संक्षिप्तता से करते हैं कि पाठक घिरकर रह जाता है। उनके व्यंग्य न हंसने देते हैं, न रोने देते हैं। व्यंग्य में तीखापन तिलमिला कर छोड़ता है। सच्चाई के धरातल पर खड़े रहना संभव है, लेकिन पोली जमीन पर आदर्शों के पेड़ या सपनों के महल खड़े नहीं हो सकते। अपने व्यंग्य में संजय यही रेखांकित करते हैं...
-इंडिया टुडे, नवम्बर 2008