संजय झाला का व्यंग्यकार आस-पास की अनेक विद्रूपताओं पर हाथ रखता है और सूक्ष्म छिद्रान्वेषण कर पाठक के सामने सच लाता है। उनके व्यंग्यकार के पास एक दिव्य दृष्टि भी है, जिससे उसने आँखों से देखे जाने वाले सच को भी बारीकी से पकड़ा है।
संजय मूलतः एक मंचीय कवि हैं, इसलिए उनके व्यंग्यों में हास्य काफी उभरा है।- पूरन सरमा
Puran Sarma