संजय झाला को सुनना जितना प्रीतिकर है, पढ़ना उससे ज़्यादा रुचिकर है। मैंने संजय के काव्य के बचपन को घुटनों चलते देखा है और आज उसका यौवन देख रहा हूं। भाषा और शिल्प पर जितनी अच्छी पकड़ संजय की है, वह बहुत कम हास्य कवियों में देखी जाती है। पुराने ऐतिहासिक-धार्मिक पात्रों पर लिखना दुधारी तलवार पर चलने से कम नहीं होता, परन्तु संजय ने इसे भी कुशलता पूर्वक निभाया है। आज वो देश और दुनिया के चर्चित हास्य-व्यंग्यकारों में है। मैं भी उसके मंच कौशल से उतना ही प्रसन्न होता हूँ, जितना द्रोण अर्जुन का रण कौशल देखकर होते थे।
- बलवीर सिंह 'करुण'
Balveer Singh 'Karun'