संजय काव्य मंचों पर कविता को अभिनय, अनुकृति व प्रस्तुतिगत अभिनव प्रयोगों को साथ लेकर आए। नयेपन और ताज़गी के कारण श्रोताओं ने तो उन्हें हाथो-हाथ लिया। मैं प्रारंभ में उनका पक्षधर नहीं था। कालांतर में उन्होंने अपनी अलग शैली ईजाद कर कविता में अभिनय-अनुकृति को सर्व स्वीकार्य बना दिया। एक दिन यात्रा में मैंने उसका व्यंग्य आलेख पढ़ा, मैं दंग रह गया। मैंने खूब ठहाके लगाए। मैं उसकी लेखनी से पूर्णतः प्रभावित हुआ और प्रवाहित भी। मंच पर कविता में अभिनय व नाट्य प्रयोग शैली को विस्तार देने का श्रेय संजय के खाते में है।
- हरि ओम पंवार
Hari Om Panwar